होली 2025 में कब है ?
आइये जानते है 2025 में होली किस तारिक मनाई जाएगी जैसा की हम सभी जानते है की होली हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है जिसके अनुसार 13 मार्च को रात्रि में होलिका दहन होगा और अगले ही दिन 14 मार्च को होली खेली जाएगी भारत के कई स्थान पर होली रंग पंचमी के दिन खेली जाती है जो होली के पांचवे दिन होती है इस साल रंगपंचमी 19 मार्च को आ रही है इस दिन भी देश के कई हिस्सों में धूम धाम से होली मनाई जाती है |

होली का परिचय
भारत में सालभर में अनेक त्यौहार आते है जिन्हें हर भारतवासी धूमधाम से मानते है और खुशिया बाँटते है उसी प्रकार से होली भी भारत का एक प्रमुख त्यौहार है जिसे पुरे देश में उत्साह के साथ मनाया जाता है होली,दिवाली की तरह ही भारत का प्रमुख त्यौहार है इसीलिए दिवाली के बाद यही त्यौहार है जिसे बड़े स्तर पर मनाया जाता है |
होली के दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हुयी थी इसीलिए इसे ख़ुशी के साथ मनाया जाता है
होली के इस त्यौहार पर पहले दिन लकडियो और गोबर के उपलों से हर गाँव गली मोहल्लो में होलिका बनाकर फूलो वस्त्रो मालाओ और रंगोली बनाकर सुशोभित किया जाता है
फिर महिलाओ द्वारा होलिका का पूजन किया जाता है इस पूजा में वे अपने अपने घरो से प्रसाद बनाकर लाती है और उस प्रसाद का भोग लगाकर दीपक प्रज्वलित करके पूजन किया जाता है तथा जल के कलश से जल चढ़ाकर होलिका के आसपास फेरे लगाये जाते है तथा प्रार्थना की जाती है पूजन ख़त्म होने के बाद रात्रि में होलिका को जलाया जाता है जिसे होली दहन कहते है होली दहन करने का यह उद्देश्य है की इसी अग्नि में हम अपने अन्दर की सारी बुराइयों का त्याग कर अग्नि के हवाले कर दे और प्रार्थना कर आशीर्वाद की प्राप्ति करे |
होली दहन के अगले दिन रंगों से खेल कर होली मनाई जाती है होली के दिन विभिन्न प्रकार के रंगों को बाजार से खरीद कर लाया जाता है और एक दुसरो को लगाया जाता है इस दिन लोग अपने परिवार वालो , मित्रो , सगे संबंधियों , बंधुओ , परिजनों के साथ एक दुसरे को रंग लगाकर उत्साह के साथ खुशिया मानते है नृत्य करते है मिठाइयाँ बनाते है और अपने परिजनों में बांटते है भजन गाते है भक्ति करते है इस दिन सरकारी और प्राइवेट हर विभाग का अवकाश रहता है ताकि हर व्यक्ति अपने परिवार के साथ होली के त्यौहार को सेलिब्रेट करे इस त्यौहार को बच्चे बूढ़े महिलाये हर वर्ग के व्यक्ति मनाते है होली एक खुशियों का त्यौहार जहा सभी बुराइयों व्यक्तिगत मतभेद और मनभेद को भुलाकर एक दुसरो में खुशियों बांटी जाती है इसीलिए कहते है की “ होली के दिन दिल मिल जाते है रंगों में रंग मिल जाते है और दुश्मन भी गले लग जाते है”
होली का महत्व ( होली क्यों मनाई जाती है? )
होली बुराई पर अच्छाई की जीत का और जीत की खुशिया मनाने का त्यौहार है होली भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण त्यौहार है जो सदियों से चला आ रहा है जिसका वर्णन हमारे हिन्दू ग्रंथो में मिलता है होली की एक बहुत प्राचीन कथा है जहा से होली का उद्गम हुआ था और अब तक यह त्यौहार समस्त हिन्दू समाज द्वारा मनाया जाता है |
सतयुग के चौथे चरण में दैत्यों का राजा हिरन्यकश्यप हुआ करता था जिसे अपनी शक्तियों पर बहुत अहंकार था उसने कड़ी तपस्या करके ब्रम्ह देव से वरदान प्राप्त किया था जिसके अनुसार “ना उसे कोई मनुष्य मार सकता था ना कोई देवता ना असुर ना जानवर ना उसे दिन में मारा जा सकता था ना रात में ना अस्त्र से मारा जा सकता था ना शस्त्र से” इसीलिए वह काफी शक्तिशाली हो गया था और इन शक्तियों के साथ उसका अहंकार चरम सीमा तक पहुच गया था यहाँ तक की उसने ब्राम्हणों मनुष्यों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था वह खुद को भगवान् मानने लगा था जब भी कोई यज्ञ करता पूजा पाठ धर्म का कार्य करता तो वह उस पर अत्याचार करता था और स्वयं की पूजा पाठ करवाता था जिससे मनुष्य और देवता दोनों चिंतित थे पर हिरन्यकश्यप के यहाँ एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम प्रह्लाद था जो आगे चल कर भक्त प्रह्लाद कहलाया प्रह्लाद भगवान् विष्णु का परम भक्त था वह जैसे जैसे बड़ा होता गया उसकी भक्ति भी बढती गयी वह हमेशा भवान विष्णु की आराधना और नाम जप करता रहता था जो हिरन्यकश्यप को बिल्कुल भी रास नही आता था हिरन्यकश्यप ने प्रह्लाद को मृत्यु देने का निर्णय ले लिया था तथा कई बार प्रयास भी किये गये थे परन्तु भगवान् विष्णु का भक्त होने के कारण मृत्यु भी प्रह्लाद का कुछ नही बिगाड़ पाती थी
एक दिन हिरन्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया जिसे यह वरदान प्राप्त था की अग्नि उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी होलिका प्रह्लाद को लेकर लकडियो से बने हुए आवरण के बीच जा कर बैठ जाती है और उन लकडियो में आग लगा दी जाती है तब और प्रहलाद भी होलिका की गोद में बैठा हुआ था और भगवान् विष्णु का नाम जप कर रहा था लकडिया जलने के बाद होलिका तो जल गयी परन्तु प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ फिर हिरन्यकश्यप ने स्वयं में प्रह्लाद को मारने की कोशिश की तब ही भगवान् विष्णु ने नर्सिंग अवतार ले पर प्रकट हुए थे और साध्य काल में अपने नाखुने से हिरन्यकश्यप का वध किया
तब से ही अच्छाई की बुराई पर जीत के लिए होली दहन किया जाता है और सभी बुराइयों के नाश के लिए होलिका दहन की अग्नि में सभी अपने अन्दर की बुराइयों को अग्नि में दहन कर दे इसीलिए होली का त्यौहार मनाया जाता है और उन बुराइयों के दहन की ख़ुशी को रंगों मिठाइयो और पूजा पाठ करके भजन गीत गा कर नृत्य करके मनाया जाता है
श्रीकृष्ण और राधा की होली
होली के त्यौहार को प्रेम और भक्ति और समानता के त्यौहार से भी जोड़ा जाता है यह त्यौहार समानता का और मतभेदों को खतम करने का त्यौहार है
होली के रंगों के साथ खेलने की परम्परा को श्री कृष्णा जी ने ही अपनी प्रियतमा राधा के साथ खेल कर शुरू किया था

भगवान् कृष्णा का जन्म मथुरा में हुआ था तब से ही वे सांवले थे और इस बात का राधा रानी और अन्य गोपिया उनका उपहास करती थी की हमारा रंग गौरा है और तुम्हारा रंग सांवला है श्री कृष्णा इस बात की मैया यशोदा से हमेशा से ही शिकायत किया करते थे की राधा और अन्य गोपिया मुझे सांवला कह कर मेरा मजाक उड़ाती है कहती है की हम सब का रंग तो गौरा है और कन्हैया तो सांवला है तब ही यशोदा मैया हसते हुए उन्हें एक उपाय बताती है की तुम अपने मुह पर किसी भी प्रकार का रंग लगा लो तो तुम्हारा रंग भी वैसा ही हो जायगा तब श्री कृष्णा अपनी ग्वाल टोली के साथ गोपियों को रंग लगाने जाते है और उनके चेहरे को रंग से रंग देते है तब से ही यह प्रथा पुरे गाँव में प्रचलित हो गयी और सभी रंगों से खेलने लगे और यह एक त्यौहार के रूप में प्रचलित हो गया
रंगों का यह त्यौहार हमे समानता और प्रेम का महत्व बताता है इसी कारण होली को वृन्दावन , मथुरा,ब्रिज और बरसान में विशेषकर होली बहुत धूमधाम से मनाई जाती है जो पुरे देश में प्रसिद्द है
आज भी इन शहरो में विभिन्न प्रकार की संस्कृति के अनुसार होली मनाई जाती है
होली के प्रकार
1 बरसाना की लट्ठमार होली
उत्तरप्रदेश के नंदगाँव और बरसाना में लट्ठ मार होली खेली जाती है जो की श्री कृष्णा और राधा रानी का जन्म स्थान है यह होली राधा कृष्णा के प्रेम और भक्ति की अद्भुत लीलाओं को दर्शाता है जो देखने में बहुत मनमोहक लगता है जिसमे महिलाये लाठी और डंडो से पुरुषो पर प्रहार करती है और पुरुष अपने बचाव में ढाल से बचाव करते है और एक दुसरो को रंग गुलाल लगाया जाता है
2 वृन्दावन की फूलो की होली
यह होली वृन्दावन में श्री बांके बिहारी जी के मंदिर में खेली जाती है इसमें रंग गुलाल के स्थान पर फूलो का इस्तेमाल किया जाता है और बांकेबिहारी जी के साथ होली खेली जाती है मंदिर में चारो ओर फूलो की होली की धूम होती है भक्तो और भनवान पर उड़ाते हुए फूलो का दृश्य बहुत मनमोहक और मन को तृप्त कर देता है जो आध्यात्मिकता और भव्यता का अनुभव कराता है
3 धुलेंडी
यह होली दहन के एक दिन बाद भारत के लगभग सभी हिस्सों में मनाई जाती है जिसमे रंगों के साथ पानी के साथ एक दुसरे को रंग लगाकर मनाई जाती है और विशेष तरह के पकवान और मिठाइयाँ बनाई जाती है अपने परिजनों के साथ बाँट कर होली की शुभकामनाये दी जाती है
4 होला मोहल्ला
यह पंजाब की वीरता वाली होली होती है जिसे सिक्ख समुदाय द्वारा मनाया जाता है इस परंपरा को गुरु गोविन्द सिंह जी द्वारा शुरू किया गया था जिसमे होली के अगले दिन घुड़सवारी तलवारबाजी और युद्ध कला का प्रदर्शन किया जाता है |
5 रंगपंचमी
रंगपंचमी मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में अधिकतर मनाया जाता है यह होली के 5 दिन बाद आने वाला त्यौहार है जिसे धार्मिक अनुष्ठानो की तरह आयोजित किया जाता है जिसमे धार्मिक शोभयात्रा निकली जाती है और रंगों से खेल कर उत्साह मनाया जाता है |
6 शिमगो – गोवा की पारंपरिक होली
गोवा में होली को शिमगो कहा जाता है जो गोवा के स्थानीय कृषि से सम्बंधित लोगो द्वारा मनाया जाता है जिसमे संस्कृतिक एवं लोकनृत्य गीत संगीत के साथ रंगों का उत्सव मनाया जाता है|
7 मथुरा वृन्दावन की होली
मथुरा और वृन्दावन में होली 10 से 15 दिन चलने वाली होली होती है जिसमे छडिमार होली,फूलो की होली,दही हांड़ी और अन्य प्रकार की रांस लीलाओ से परिपूर्ण होती है यह भारत में सबसे ज्यादा समय तक चलने वाली और भारत की सबसे प्रसिद्द होली है जहा भारत में पुरे देश ही नही बल्कि विदेश से भी कई लोग इस होली का आनंद लेने आते है
8 मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ की आदिवासी होली
इसमें मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदाय की विभिन्न जनजातीय सम्मिलित होती है वे अपने सांस्कृतिक नृत्य और संगीत के साथ पारम्परिक होली मनाते है और होली के रंगों से और अपनी संस्कृति से प्रकृति और प्राकृतिक धरोहर को दर्शाते है |
9 बंगाल की डोल यात्रा
पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में इस त्यौहार को भगवान् कृष्णा और राधा की मूर्ति को झूले में बिठा कर नगर में फूलो और गुलाल को उड़ाकर शोभायात्रा निकली जाती है और भजन कीर्तन करते हुए लोग भक्ति में झूम उठते है
10 कुमाउनी होली
यह उत्तराखंड में अपने सांस्कृतिक संगीत के साथ मनाई जाने वाली होली होती है जो विशेषकर तीन रूपों में मनाई जाती है
1 बैठकी होली – इसमें उत्तराखंड के शास्त्रीय रागों के आधार पर बैठ कर संगीत का आयोजन किया जाता है
2 खड़ी होली – इसमें शास्त्रीय संगीत के साथ पारम्परिक वैशभूषा के साथ मनाई जाती है
3 महिला होली – इसमें सिर्फ महिलाओ द्वारा हिस्सा लिया जाता है और गीत गाकर उत्सव मनाया जाता है |
निष्कर्ष
होली त्यौहार एक ही है यह अनेकता में एकता का परिचय देता है जैसे अलग अलग स्थानों पर अलग अलग रीती रिवाजो से त्योहारों को मनाया जाता है परन्तु उसका महत्व एक ही होता है उसी प्रकार व्यक्ति भी अलग अलग मानसिकता अलग अलग संस्कृति से जुड़े हुए कोई निर्धन और धनवान कोई शारीरिक बनावट से भिन्न होता है परन्तु उसे मानव और जीव के प्रति एक ही भाव रखना चाहिए और वो प्रेम और समानता का यही हमारी संस्कृति और त्यौहार हमे प्रेरणा देते है |